Thursday 31 May 2012

यकीन तो था हमें
आपको तलाश तो है
मगर दिल से नहीं मिले फिर भी...

Monday 28 May 2012

काश फिर एक बार

काश,
फिर ये ख़ामोशी टूटे,
सालों से दबी हुई
दिल की बात हो जाये...
मैं कहूँ, वो सुने,
कहते कहते मैं चुप हो जाऊं,,
वो मेरी नम आँखों की तन्हाई समझ जाये ...
काश,
फिर ये बरसात हो,
मैं भीगूँ , वो भीगे
पास आकर वो कहे
मैं तुम्हे छू लूं?
मैं कहूँ नहीं
और वो छू ले मेरे दिल को...
वो कहे क्या मैं तुम्हे चूम लूँ?
मैं फिर कहूँ नहीं
और....
काश एक बार फिर प्यार हो जाये....


Sunday 27 May 2012

नेट पर फिल्म देखना और संगीत सुनना कितना सुखद और सुविधाजनक है

नौकरी पेशा लोगों क लिए बहुत बढ़िया option है।
इसमें कोई बुराई नहीं लगती मुझे अगर site में कोई copyright न हो और यह public domain के लिए प्रकाशित हो । आजकल लोगों के पास समय ही कहाँ है जो वो हमेशा थेअटर ही जाएँ या अपने पसंदीदा संगीत सुनने के लिए CDs' ही खरीदें । अब घर, ऑफिस या कही भी बेठे हम अपनी कोई भी पसंदीदा फिल्म या संगीत free online देख-सुन कर अपने को थोडा relax कर सकते हैं जो की मेरे हिसाब से बहुत ही सुखद,सुविधाजनक होने क साथ साथ किफायती भी है। वैसे Netflix, Amazon वगेरह कई sites कुछ फीस लेकर भी हमारी पसंदीदा फिल्मे दिखाती हैं और वो भी बिलकुल legal.

Friday 18 May 2012

पति पत्नी और 'वो'

राहुल और गरिमा की शादी को अभी साल भी नहीं हुआ था की उनकी शादी शुदा जिंदगी में जहर घोलने आ गयी थी 'वो'। उसके आते ही दोनों के सपनों का घर सपनों में ही ख़ाक हो गया।


'वो' कोई और नहीं बल्कि उन्ही दोनों की बनाई गयी आपस की दूरी थी जिसने दोनों को एक दुसरे से इतना दूर कर दिया की बात तलाक तक पहुँच गयी।' वो' जिसका कोई वजूद ही नहीं था धीरे धीरे अहम्, शक, लड़ाई झगडा और फिर तलाक न जाने कितने रूप ले लेती है। ये थोड़ी सी दूरी पति-पत्नी क नाज़ुक रिश्ते को बिखरा कर रख देती है। साथ-साथ जीने मरने की कसमें खाने वाले राहुल और गरिमा को अब एक-एक पल साथ रहना मुश्किल लग रहा था। कैसे ये दोनों साथ रहकर भी जुदा जुदा सी सारी जिंदगी बिताएंगे। लव मर्रिज होने क बावजूद भी दोनों क रिश्ते में दरार आ गयी कारण राहुल का गरम स्वभाव और एहम(एगो). छोटी-छोटी बातों पर आग बबूला होना और हाथ तक उठा देना। भला गरिमा ही क्या कौन बर्दाश करेगा और भला कब तक। यहाँ एक बात महसूस करने की है की आजकल पुरुषों क साथ महिलाएं भी पड़ी लिखी हैं इसलिए उनमें भी आत्मसम्मान ज्यादा आ गया है क्योंकि वो भी आज अपने पैरों पर खड़ी हैं। बात अगर यंही तक रहती तो भी संभल सकती है पर जब इन्सान को लगने लगे की वो तो बिलकुल सही है और सामने वाला ही गलत है तो फिर वह सामने वाले को नीचा दिखने में भी कसर नहीं छोड़ता है।

इन्ही की तरह एक कहानी है भावना की जिसकी शादी तो हो गयी पर शादीशुदा जिंदगी का सुख देखने को तरस गयी। एकलौती बहु होने क बावजूद शादी के १० सालों में भी ससुराल को वो अपना घर नहीं कह पाई है कारण पुरानी मानसिकता से पीड़ित सास-ससुर, विवाहित नन्द का उसी घर में रहना और उनकी हाँ में हाँ मिलाने वाला उसका पति सुनील। अछी नौकरी के बावजूद भावना रोज किसी न किसी बात पर ससुराल वालों के ताने सुन सुन कर थक चुकी है। सास ससुर चाहते हैं बहु नौकरी भी करे घर में पैसे लाये और घर क कामों में भी बिलकुल परफेक्ट हो वेगेरह-वेगेरह। भावना को हमेशा यही दुःख रहता की वो चाहे उन्हें कितना भी खुश कर ले पर उसे कभी वो प्यार और जगह नहीं मिल सकती जो उसी घर में नन्द ने ले रखी है क्योंकि उसके सास-ससुर को बेटी के प्यार में अपनी बहु की सिर्फ कमियां ही कमियां नज़र आती थी। जिन्हें वो समय-समय पर बहु को बोल बोल कर पूरा कर देते थे। रोज रोज के ताने और गली-गलोच सुन सुन कर भावना की भी हिम्मत टूट चुकी थी, क्योंकि शुरुआत में जब वो सुनील को यह बताती तो सुनील अपने माता-पिता का ही साथ देता था।

सुना है बुजुर्ग घर को बनाते हैं पर यहाँ तो उन्होंने ही अपनी पुरानी दकियानूसी बातों और शर्तों से अपने ही घर को तबाह कर दिया है। सुनील ने कभी सोचा ही नहीं की सारा घर एक तरफ और भावना एक तरफ,कितना अकेला महसूस करती होगी खुद को। वो भी जब उसका अपना पति भी उसका साथ देना तो दूर उसे समझ ही नहीं पाया आज तक , जिसके लिए वो अपने माता-पिता का घर छोड़कर आई , जिसे प्यारे से २ बच्चे दिए। क्या कभी अकेले में ही सुनील को कभी जरुरत महसूस नहीं हुआ की भावना से दो पल प्यार से बात कर ले उसे समझाए की उसके घरवाले चाहे जो कहें में तेरे साथ हूँ, तू चिंता मत कर। काश...
काश ! अगर कभी सुनील एसा सोचता तो शायद उन दोनों के बीच इतनी दूरी ही नहीं आती। भावना जो कभी हसमुख हुआ करती थी वो भावना अब कहीं खो गयी, और depression का शिकार हो गयी, अब बर्दाश करना उसके बस की बात नहीं रही। शादीशुदा होने के बावजूद भी उसे उसकी जिंदगी तलाकशुदा नन्द से भी बत्तर लगने लगी थी। ये अहम, थोड़ी सी दुरी आखिर न जानेकब एक दिन दोनों का तलाक करा दे।
पर अवतार मोहन जी को उम्र के ६० वे पड़ाव में बीवी की एहमियत समझ आई है, जिस बीवी को उन्होंने हमेशा तिरस्कार किया आज उसी का सहारा रह गया है उनके पास। उनके दोनों बेटे बाहर बस गए और बेटी की शादी हो चुकी है। माता पिता भी गुजर गए, अब अवतार मोहन जी को सही अर्थ में शादी होना और पति बनने का मतलब समझ आया है।
जहाँ पति-पत्नी की आपस की दुरी बदती है और प्यार कम, तकरार ज्यादा होने लगती है, वहीँ शक और विवाहोतर सम्बन्ध (extra-marital affair) की शुरआत होती है। खुदखुशी भी की सम्भावना बनी रहती है।
सच अगर हम समय रहते ही समझ जाएँ की शादी सिर्फ दो जिस्मों का मिलन ही नहीं बल्कि दो भावनाओं का भी मिलन है, जिसमें गौर करने वाली बात ये नहीं है की कौन जीता कौन हारा, बल्कि क्या टूटा और वो है केवल रिश्ता जो दोनों का एकदूसरे से एक ही है। यह बात हम जितना जल्दी समझ जाएँ उतना ही अच्छा है ,बाद में पछताने से सिर्फ अकेलापन ही मिलेगा क्योंकि अच्छा समय तो रेत की तरह फिसल चुका होगा....



Thursday 17 May 2012

Poision of life

JUST FOR A SINGLE DROP OF UR LOVE,
I HAVE TAKEN ALL POSION OF LIFE,,
IN ALL YEARS U NEVER THINK OF,
NOR I EVER STOPPED,,
YOU CANT TAKE BACK THE PAST,
AND I M NOT ABLE TO MAKE MY PRESENT,,
JUST FOR A SMILE IN UR FACE,
I HAVE TAKEN ALL PAIN IN MY EYES,,
STILL ALL I CAN DO IS TRY AND FIGHT,
TILL I WILL NOT BE BROKEN,,
तेरे प्यार की एक जरा सी बूँद क लिए,
जिंदगी का सारा जहर मेंने पी लिया

Wednesday 16 May 2012

चाहत

आपको चाहने की कोई वजह नहीं है,
शायद मेरी तन्हाई की इंतिहा यही है,
ढूँढती हूँ दर्द में खुशियाँ कहीं है,
माना की मुझमे अलग कुछ भी नहीं हे,
पर जो मुझमे है वो किसी और में भी नहीं है।

Monday 14 May 2012

छोटी सी बात-मानवता के लिए

सुना था 'मानवता' अभी मरी नहीं है. आज भी हमारे देश में बहुत से इसे लोग हैं जो बिना किसी स्वार्थ क दूसरों की सहायता क लिए सदेव तत्पर रहते हैं. फिर यह निस्वार्थ सहायता चाहे किसी भी रूप में क्यों न हो.

एक महिला की छोटी सी हिम्मत ने मुझे अन्दर तक हिला दिया था और सोचने को मजबूर कर दिया की हम सभी कहते तो हैं हमें जरुरतमंदो की सहायता करनी चाहिए, गलत बात के लिए सदेव विरोध करना चाहिए पर हम में से कितने लोग सच में एसा कर पाते हैं? आए दिन हम अपने आस-पास महिलाओं, बच्चों के साथ छेडकानी, बदतमीजी देखकर नज़र-अंदाज़ कर देते हैं क्योंकि वो हमारे कुछ लगते जो नहीं हैं.

मुझे आज भी याद है २ साल पहले क़ा वह दिन, मेन ऑफिस से बस में सफ़र कर रही थी, शाम का वक्त था, ऑफिस टाइम होने से बस में भीड़ बहुत थी। तभी दो लोफर लड़के हेल्पर /कंडक्टर से टिकिट को लेकर बहस करने लगे और इतने में एक ने उस हेल्पर जो बेचारा बच्चा ही था, को जोर से २-४ थप्पर जड़ दिए और गाली-गलोच करने लगा। सभी चुप-चाप मूक दर्शक बन कर देखते रहे और ऊन सभी में मैं भी शामिल थी क्योंकि मैं भी सभी की तरह यही सोच रही थी की कौन इस पचड़े में पड़ेगा एंड इन गुंडे लड़कों से पंगा क्यों ले भला। पर तभी एक युवा महिला जोर से बोली,'तुमने इसे थपर क्यों मारा, मुंह से भी तो बात कर सकते हो" वो आवारा लड़का गुस्से में बडबडाने लगा " तुझे क्या तकलीफ हो रही है "। पर फिर भी वह महिला नहीं डरी और बोली "तुम सब के सामने किसी को चांटा मार दोगे, कुछ भी करते रहोगे और तुम्हे कोई कुछ भी नहीं बोलेगा, क्या अब तुम्हे तमीज भी सिखानी पड़ेगी"। उस महिला की हिम्मत के सामने उन लड़कों की भी बोलती बंद हो गयी। थोड़ी देर बाद उस महिला का स्टॉप आ गया और वह ग़ेट पर लटके उन लड़कों को डट कर बोली "ग़ेट से हटो"। मैं ये देखकर दंग रह गयी की उस महिला को जरा डर नहीं लगा कहीं ये दोनों उसका पीछा या बद्तिमीजी तो नहीं करेंगे। उसकी हिम्मत और साहस देखकर मुझे भी अपने आप में आत्म-विश्वास आया है की हम अपनी ही नहीं बल्कि दूसरों की मदद भी कर सकते हें और हमें करनी चाहिए।
मैं इस पोस्ट क माध्यम से उन सभी लोगों को भी अनुरोध करती हूँ जो अपना खाली टाइम सत्संग या धार्मिक स्थानो में बिताते हें, अगर वो अपना कुछ समय जरुरत मंद लोंगों की मदद करने में व्यतीत करें तो निश्चित रूप से उन्हें आत्मशांति की अनुभूति होगी। जो लोग नौकरी या बिसनेस आदि में हें वो भी कई तरीके से जरुरत मंदों की मदद कर इंसान होने का गौरव प्राप्त कर सकते हें। निस्स्वार्थ रूप से की गयी सहायता रुपये-पैसे से की जाने वाली सहायता से भी बड़ी होती है। जैसे:-
१) रक्त दान - महादान
२) नेत्रहीन /वृद्ध /विकलांग व्यक्ति की सहायता किसी भी प्रकार से करना जैसे रोड पार कराना या बस/ट्रेन आदि में सीट देना आदि ।
३) घायल को अस्पताल पहुचाना और उसके परिजनों को सूचित करना।
४) गरीब, निसहाय तथा वृद्ध जो अकेले अस्पतालों क चक्कर काटते रहते हैं जिन्हें अस्पताल के नियम औपचारिकता आदि नहीं पता , आप यहाँ कभी महीने /हफ्ते में एक दिन जाकर भी उन निसहाय लोगों की मदद कर सकते हैं।
५) गलत बात और गलत व्यक्ति का विरोध करें क्योंकि बुराई को सदेव हटाए, दबाएँ नहीं, नहीं तो वह और बढेगी।
६) और आखरी पर सबसे अहम, ये सभी उपरोक्त बातों पर अमल करें तथा अपने आस पास सभी लोगों और बच्चों को भी यही समझाएं की सेवा ही परम धरम है यही सही अर्थ में मानवता है।
सच अगर हम सच्चे मन से लोगों की निस्वार्थ सेवा करें तो उनकी दूआओं से हमारे जीवन में खुशियाँ ही खुशियाँ आ जाएँगी।

Monday 7 May 2012

teri yaad

रात को जब तुम्हारी याद आई
न जाने क्यों आंख भर आई
मेरे पास तो यादों के सिवा कुछ न था
चाँद में मुझे तुम्हारी शकल नज़र आई
मुझे मरने का तो डर न था
पर मौत तो तब हसीं होगी
जब तेरी बाहों में मरु और दिल रुक जाये
जब तेरी आँखों से एक आसूं मेरी रुके दिल को वापस धडकाऐ
मुझे अपनी जिंदगी में जो गम मिले
वो तेरे एक अहसास से धुल जाये
अब और कुछ नहीं मांगती में उस रब से
मेरे दिल को तू ही अब समझाए

Gujrat and babri mazjid dangon (riots) per

दंगा दंगा दंगा
हर तरफ से आती है आवाज़
क्यों फ़ैल गए इस देश में ऐसे जालिम बदमाश
ऐसे जालिम बदमाश
जो मिटा रहे इस देश को
जाती -पाती के भेद से भड़का रहे इस देश को
पहले इस भड़कती आग को बुझाओ
मंदिर मस्जिद इसके बाद बनाओ