Monday 29 July 2013

घाव

मैंने सोचा भी कैसे,
घाव भर जायेंगे
मैं भूल जाऊंगी तुम्हे
और सावन लौट आएंगे।।

कोशिशें तो की बहुत
बारिशों में भीगने की,,
दर्द का दरिया
बना छाता तो कभी,,
अकेलापन मुझे सुखाये रहा
खुशिया खिसकती रहीं
रेत की तरह और ,,
भारी हुई जिंदगी मेरी।

यूँ तो हर रात,
आंख लग ही जाती हैं
निष्फल उमीदों की सेज पर
पहाड़ सा लगता हैं कभी
सिर्फ जिन्दा रहना,,
प्रतिदिन की दौड़-भाग
बड़ते-घटते दुःख
दम घोंटते रिश्ते
छोटे-बड़े सपने बुनके
उन्हें टूटते हुए
देख कर रोना
फिर उसी माया-जाल में
डूबना बार-बार
जिसे धिक्कारने को
मन करता है
की बहुत जी लिया,,
और चैन से सोने को
मन करता है

अब तो लगता है
खून के आखरी कतरे तक
नित नए जख्म
रिसते जाएँगे,,
 रिसते जाएँगे।




 



         


Friday 26 July 2013

कोई रिश्ता बनाना न तुम

एहसास को कोई रिश्ता
बनाना न तुम
यूँही मिलना और मुस्कुराना
गुजारिशें करना और
मुझे चाहना तुम

ख़ुशी का कम्पन सा जो
हो जाता हैं तुम्हे सोचकर
उसे मंद आँखों में ही सजाना तुम
एहसास को कोई रिश्ता
न बनाना तुम

भागती-मचलती
सांसों की हलचल
बहुत सुखद लगती है
जब नज़र से नज़र
मिलाये नही मिलती
एक उमंग सी
दिल को बेचेन किये रहती है
न थकती है न थकाती है
इसी मीठी उम्मीद की
बारिश में ही हरदम
मुझे भिगाना तुम
एहसास को कोई रिश्ता
न बनाना तुम

रिश्तों के भवंर में
कुछ कभी कहाँ बचा
समाज की बेड़ियों में
खुद को जकड़े  रखना तुम
एहसास को कोई रिश्ता
न बनाना तुम

Wednesday 17 July 2013

प्यार तो बस !

पल-पल बदलता है जो-------
न मरता है न कम होता है
जलता है या दफ़न होता है
जरूरतों में तोला जाता है
कभी रिश्तों में बाँधा जाता है
जज्बातों में महसूस---
तो कभी अनदेखा किया जाता है
कोई चेहरा दिल को छू लेता है
तो कभी दिल से चेहरा ही बदल जाता है

मन की ख़ूबसूरती कहाँ कोई देखता है
सच्चे दिल  दिल की कहाँ कोई सुनता है
तन्हाई की आगोश में
रुसवाई लिए दर्द में
कहीं जरा सी धुप दिखे
शायद वही तो है 'प्यार'----

----------------मिनाक्षी 

Tuesday 16 July 2013

तुम नाराज हो !

सालों बीते एक अजनबी के साथ
जैसे एक उम्र बीत गयी
अपनेपन का एहसास तक नहीं,,
'प्यार' शब्द का लेना तो होगा गुनाह
रुसवाई के दर्द में
भीगी पलकों की बारिश में
एक ओस की बूँद की तरह
तुम नाराज हो…

न मेरे आंसू , ना तुम्हारी नफरत
थम रही है तो बस मेरी साँसे
जिंदगी मजाक बन गयी
और कितना  गिराऊं खुद को
की तुम नाराज हो,,,

इंतज़ार रहता है बस सबके सोने का
तन्हाई की ख़ामोशी में एक कोने का
लिपट के तकिये से कई बार रोती हूँ
सब कुछ तो है मेरे पास, सोचती हूँ
फिर क्यों रहे मेरे हाथ कुछ खाली से,,,
के कभी तो तुम जागो गहरी नींद से,,
मगर खर्राटों में तुम्हारी,
सिसकियाँ मेरी कहीं दब जाती हैं
एसे ही हर रात कट जाती है
फिर भी तुम नाराज हो,,,

सुना था :कोशिश करने वाले की हार नहीं होती
मगर उस जीत में क्या जीवन बचा
जहाँ उम्र बीत चुकी और जज्बात भी
हाँ हार चुकी इस जीवन से
तभी तो छल -छला जाती हैं ये आंखे
पीड़ा किसी की देखकर
जैसे दागा हो किसी ने अपने ही दर्द पर
पल पल खुद को बदला मगर काश,,
जो शामिल होती मेरी चाहत में तुम्हारी भी
पल पल जहर घुल रहा है
यूँही जिन्दा मार रहे हो
फिर भी तुम नाराज हो,,,

...मिनाक्षी




Tuesday 9 July 2013

FOR LIFE !

Few days back..i saw one advertisement of "Quit Smoking camp" in newspaper and tried to show to my husband to join, my small kid curiously asked me what's it was. My husband angrily said,y to tell this loudly... i thought if there is something which u have to hide to do, even to talk about that in the presence of ur kids.. then is it so necessary for u.. to continue..??
Cant we quit or minimize such things at the cost of our family?
Why Smoking/alcohol have become fashion trend for enjoying life..??Is happy life not possible without such addiction???
LIFE IS SHORT! MAKE EVERY MOMENT HAPPY N LIVING, NOT BY REDUCING DAYS BY SMOKING/ALCOHOL/DRUG ADDICTION FOR THE SAKE OF ENJOY....PLS THINK OVER IT..

Friday 5 July 2013

jindagi ka dard

कहते हैं सिर्फ जीना,, तो जिंदगी नहीं
तो फिर कैसे जियें हम ..
उन रिश्तों के सहारे जिन्हें कभी समझ ही नहीं पाए
या उस प्यार की ख्वाइश में जिसे उम्र भर सिर्फ तलाशते रहे
और उस तलाश में न जाने कितनी बार प्यार कर बैठे
हर बार, सोच, तो कभी खुद को बदलते रहे,
किन्तु जरुरत बस वही रही
और मुसाफिर बदलते रहे,,

थोड़ी सी ख़ुशी मिले तो कितने खुश हो जाते
और जिंदगी हसीं लगने लगती
पर जरा से ग़म में आंसुओं में भरकर
जिंदगी नहीं लगती सुहानी
पर क्या चेहरे की मुस्कराहटों में कभी
छुपा है खुशहाल जिंदगी का सच भला?
तो फिर क्यों हो जाते हैं तलाक?
और क्यों कर लेता है कोई खुदकुशी?
इतना दुखी और मजबूर होकर
के कर लेते हैं क़त्ल तक,,,
जो प्यार-हमसफ़र हुआ करते थे कभी ,,

कहने को तो रिश्ते कई हैं पर ..
न भीड़ में, न परिवार में
वो सुकून वो प्यार जो नहीं मिला कभी भी कहीं
बस खुद को दूसरों की जरूरतों में ढालते रहे…
और इसी को जिंदगी समझ बैठे
रोते रहे हँसते रहे जब तक सांस है जीते रहे

जिनके साथ रहते हैं उनसे लगाव, झगडा सब हो गया
बस नहीं हो पाया वो ..
एक प्यार ही है जिसे सपनो में बचपन से संजोते रहे ,,
वो स्पर्श जो मन को सुकून दे,,
और जिंदगी का एक  एहसास दे।।।