Friday 30 August 2013

कुछ अनकही


'वह' चुप था
बहुत आक्रोश में
जैसे कुछ छूट रहा हो
उसकी मर्ज़ी के बिना

बर्दाश नहीं कर पा रहा था
उसके दूर जाने तक का एहसास
सालों से, 'वो' मांगती रही
और 'वह ' कर भी न पाया
प्यार तक
पर अब शायद,,
देह से दिल तक
आने लगा था 'वह'

और 'वो' खामोश थी
शांत बिना प्यार के
जीना सीख लिया था जैसे उसने  `

'वह' तो एक मर्द था
सारी जिंदगी बंधन में नहीं बंधा 
आज 'वो' थोड़ी सी ढील ले
खिंचाव 'वह' क्यों महसूस कर रहा था

'वो' फिर कटघरे में थी
'वह' सवाल करता रहा
परिवार-समाज की दुहाई देता रहा
…फिर हार गयी 'वो'
क्योंकि 'वह' चाहता था …




Monday 12 August 2013

हाँ, मैं अब खुश हूँ

हाँ, मैं अब खुश हूँ ….
के प्यास नहीं, कोई अब बाकी।।

वक्त का पहिया ऐसा घूमा
जख्म सूख गए हैं अब सारे
हाँ, मैं खुश हूँ ….
के निशान नहीं पर
तड़प बची है, कुछ तो बाकी ।

प्यार में जिसके पागल थी में
उसको मेरी चाह नहीं थी
हाँ, मैं खुश हूँ ….
आज खड़ा है साथ मेरे वो
और मुझमे प्यार, नहीं है बाकी । 

 खुद को खुद से लड़ते देखा
खुद में खुद को मरते देखा
हाँ, मैं खुश हूँ ….
के पास मेरे सब कुछ है अब तो
पर कहीं कुछ जैसे छूट गया'
जिसकी फांस, कहीं है बाकी ,,, 

ITS NOT COMMON:


It may be common,people talk to me..but its not:that I listen to U...


It may be common,few love me..but its not:that I feel such for U...


It may be common,many remembers me..but its not:that so much I miss U..


Meenakshi..

Thursday 8 August 2013

देश की हालत

इस देश की है कुछ ऐसी हालत:

राष्ट्रपति अब कुछ सुन्ना नहीं चाहते
प्रधानमंत्री कुछ बोलना नहीं चाहते
रक्षा मंत्री कुछ देखना नहीं चाहते

सरकार  सो रही है
गरीब जनता रो रही है

सीबीआई बिक चुकी है
स्त्री की इज्ज़त घट चुकी है

बेवजह जवान शहीद हो रहे हैं
मीडिया वाले रोटियां सेंक रहे हैं

विपक्ष एक दुसरे को गालियाँ  दे रही हैं
किसी को किसी की परवाह नहीं है

कब तक यूँही घुटते रहेंगे
कब तक हाथ पर हाथ रखे रहेंगे।।।


pyar...


 प्यार छुपता नहीं छिपाने से
आ कर लें बैर  ज़माने से… 

राह मुश्किल है, पैर चलना साथी 
के, दर्द भरता नहीं दबाने से। 

Pyar chupta nhi chipane se..
aa kar len beir jamane se..

raah mushkil hai, per chalna saathi..
dard bharta nahi dabaane se..

Thursday 1 August 2013

'वो'

खिले हुए चेहरे पर
मुरझाई सी बिंदी-पाउडर
उसके,
दर्द की लकीरों को छिपाती होगी

होंठ तो उसके
आज भी  गुलाबी हैं
पर शायद मनचला
कोई देख न ले,
'वो' लिपस्टिक की परत लगाती होगी

बहुत खूबसूरत लगती है
जब साडी पहन के आती है,
उन्हें,
जो गिद्ध की तरह बैठे हैं
नौंच खाने को
मगर 'वो' गोरी कमर के पीछे
'अपने' ने दी हुई चोट
को सभी से छुपाकर  
खुद को बचाती भी होगी

रोज छोड़ कर चली आती है
अपने नन्हे बच्चों को,
जिन्होंने ये कहकर,
कल उसे छोड़ जाना है
'तुमने' हमें वख्त ही कहाँ दिया
'वो'जानती भी है
समाज के ठेकेदार
झूठ, फरेब, बदनामी
सब दे गए उसे
और अपने इतने मेहरबान
के,
दे डाले ढेरों ख़िताब
एक  अछी -  बहु, पत्नी, माँ
के  आगे शब्द ''ना '
और 'वो' इतनी गरीब
'प्यार'  के सिवा कुछ नहीं दे पाई होगी

कोई नहीं जनता
ये 'आधुनिक नारी'
एक पिंजरे से दुसरे ,
घर- बाहर कितनी ही
सिसकियाँ दबाती होगी ।