जाती हुई धुप को,
एक चमकते हुए जुगनू से प्यार हो गया
सूरज की जलन से ज्यादा
उसे जुगनू की ठंडक भाने लगी,,
उसे मिले भी तो कैसे
दिन-रात के अंतर को
हटाये भी तो कैसे,,,
पर बिन सूरज उसका,
कोई अस्तित्व भी तो नहीं
जैसे शादी के बाद स्त्री का !
जुगनू की चमक में खो तो गयी है
कहाँ खबर है उसे,
समाज का दस्तूर निभाना है
सूरज की आग में,
फिर खुद को जलाना है !!
एक चमकते हुए जुगनू से प्यार हो गया
सूरज की जलन से ज्यादा
उसे जुगनू की ठंडक भाने लगी,,
उसे मिले भी तो कैसे
दिन-रात के अंतर को
हटाये भी तो कैसे,,,
पर बिन सूरज उसका,
कोई अस्तित्व भी तो नहीं
जैसे शादी के बाद स्त्री का !
जुगनू की चमक में खो तो गयी है
कहाँ खबर है उसे,
समाज का दस्तूर निभाना है
सूरज की आग में,
फिर खुद को जलाना है !!
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