Thursday, 5 December 2013

agar...

पतझड़ का हो मौसम
बहार नहीं आती
दो पल के लिए भी,,,
अगर  आ जाए तो।

जहाँ रिश्तों में चाहत न हो
फूलों में खुश्बू न हो…
पैरों में बेड़ियां हो…
और कब से बंद पड़ी
खिड़कियों की चिटकनी को,,,
एक हवा का झोंका
अगर तोड़ जाए तो,,,

निगाह में उसकी कभी
मेरी चाहत नहीं शामिल
और ये भी अच्छा नहीं लगता उसे
अगर मैं अजनबी हो जाऊं तो… !

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