Sunday, 15 December 2013

तुम तो समझदार ही थे
मैं ही नादानी कर बैठी,,
तुम्हारे जरा से अपनेपन को
क्यों प्यार समझ बैठी,,

आज सोचती हूँ
जब तुम परदे में हो
तो मैं क्यों बपर्दा रहूँ
हमेशा से दूर ही थे तुम
तो मैं क्यों पास रहूँ ,,,

परेशान थे न बहुत
शायद मेरी ख़ामोशी
अब तुम्हे राहत दे,,,.

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