Sunday, 11 May 2014

ये जरुरी तो नहीं

तेरी बेवफाई ने सिखाया है  ये सबक
कि हर बार तुझी से दिल  लगाऊं, ये  जरुरी तो नहीं

साथ नहीं अब 'वो'  और 'मैं'
ये उसकी बदकिस्मती है ,
हर बार मैं ही आंसू बहाऊं,  ये  जरुरी तो नहीं

फिर नयी सुबह आयेगी
खुश होगी जिंदगी यकीन है, 
हर कोई अपनी सहूलियत से प्यार करे, ये  जरुरी तो नहीं !!


Monday, 6 January 2014

तेरे प्यार में

मेरा प्यार इतना सस्ता नहीं
के तुम औरों पर लुटाते रहो…
दूसरी को पटाते -पटाते अगर
यूँही मुझे बनाते रहे उल्लु,,,
तो न मिलूंगी मैं,  न मिलेगी कोई और…
मिलेगा तो बस,,, तुम्हे…
बाबाजी का ठुलूलू,,,,,


Sunday, 15 December 2013

"दामिनी" का एक साल का सफ़र

16 दिसंबर 2012 से आज 16 दिसंबर 2013 हो गया! क्या कुछ बदला इस एक साल में? कानून बनाने या अपनी जिम्मेदारी दूसरों पर लाद देने से क्या एक नारी को समाज में इज्जत से रहने का हक़ मिल जायेगा? कभी सोचती हूँ दामिनी/निर्भय नाम क्यों हमारे मस्तिष्क में याद है क्या इससे पहले या इसके बाद कभी इतनी निर्ममता नहीं हुई जो ये सोचने को मजबूर कर दे कि औरत  होना ही पाप है।. बदनामी के डर से कितने भयानक सच कभी सामने ही नहीं आ पाये होँगे।  कल शाम TV पर  दामिनी के माता-पिता को जब प्रत्यक्ष सामने देखा Newschannel पर Central park में देखा तो ख़ुशी से आँखे भर आयी । एक साल बाद ही सही  वो सामने बिना अपना चेहरा छुपाये आये क्योंकि वो शरसार नहीं हैं, ये बहुत बड़ी बात है ।

कितना अच्छा होता कि आज उन बचे 4 गुनहगारों को फांसी दे दी जाती काश ...। पर ये भारत देश है यहाँ नियम-कानून बनाये और तोड़े जाते हैं । नारी के हक़-Property, women reservation इत्यादि कि बाते होती हैं, पर इस पुरुष प्रधान समाज कि सोच कभी नहीं बदलती ।

जैसा आज हमारे देश में एक बच्ची, एक महिला, एक माता की जो हालत है तो सोचती हूँ कि  शायद अच्छा ही है मेरी बेटी नहीं है  । देखो न दोस्तों हमें अपनी छोटी बच्ची को स्कूल, टूशन या बाहर अकेले भेजने में कई बार सोचना पड़ता है, वैसे ही एक नारी का उसके पति के बिना कोई अस्तित्व नहीं रहने देते, यहाँ पुरुषों का नजरिया, जो हमेशा गलत ही रहा है ।उन पर फब्तियां कसना, अपना शिकार बनाना कितना आसान होता है ना।अगर महिलाये शारीरिक रूप से मजबूत हो भी जाएँगी तो क्या उनका शोषण, बलात्कार रुक जायेगा, क्या घरेलू-हिंसा रुक जायेगी, क्या छोटी बच्चियां बच पाएंगी? , नहीं,,,, क्यों हमारे माता-पिता,, हमारी परवरिश ने हमें सिखाया कि तुम एक लड़की हो, दब के रहो, फिर आजकल कि युवा नारी तो पड़ी-लिखी और आत्मनिर्भर है तो वो क्यों शिकार हो रही है उदाहरण तो बहुत हैं आसाराम बापू, नारायण साई, कांडा या फिर  तेजपाल, वजह चाहे कुछ भी रही हों ।

दोस्तों मेरी एक बार फिर अप सबसे Request है कि कृपया अपना नजरिया ladies (महिला) के लिए थोडा बदलें, उन्हें उनके काम,  खूबियों के लिए इज्जत देकर देखें, वही सम्मान आप भी अपनी पत्नी, बहन, माँ  और बेटी को मिलते देखेंगे । हमें अभी से अपने अपने बच्चों, खासकर लड़को को ये सिखाना होगा कि नारी को कमजोर और उपभोग की वस्तु न समझें तथा अपनी बच्चियों को आत्मनिर्भर होने के साथ -साथ उन्हें बहादुर और अपने हितों/अधिकारों के लिए भी जागरूक करना होगा, तभी एक दिन एक बच्ची, एक नारी और एक माँ खुली हवा में सांस ले सकेगी।धन्यवाद ।.. 
  

तुम तो समझदार ही थे
मैं ही नादानी कर बैठी,,
तुम्हारे जरा से अपनेपन को
क्यों प्यार समझ बैठी,,

आज सोचती हूँ
जब तुम परदे में हो
तो मैं क्यों बपर्दा रहूँ
हमेशा से दूर ही थे तुम
तो मैं क्यों पास रहूँ ,,,

परेशान थे न बहुत
शायद मेरी ख़ामोशी
अब तुम्हे राहत दे,,,.

Thursday, 5 December 2013

agar...

पतझड़ का हो मौसम
बहार नहीं आती
दो पल के लिए भी,,,
अगर  आ जाए तो।

जहाँ रिश्तों में चाहत न हो
फूलों में खुश्बू न हो…
पैरों में बेड़ियां हो…
और कब से बंद पड़ी
खिड़कियों की चिटकनी को,,,
एक हवा का झोंका
अगर तोड़ जाए तो,,,

निगाह में उसकी कभी
मेरी चाहत नहीं शामिल
और ये भी अच्छा नहीं लगता उसे
अगर मैं अजनबी हो जाऊं तो… !

शिकायत नहीं अब मुझे,,,,

बोल देते हो न बाबू जब  प्यार से
और अपना बना लेते हो,,
दिल के खालीपन को…जैसे…

तुम्हारी मुस्कराहोटों  में
छुपी है मुझे चाहने कि खता
जो मेरी  आँखों से बयान होती हैं 

'प्यार' कितना प्यारा लगता है आज भी
और ख़ाक में मिलाने क लिए भी
ये शब्द ही काफी है,,,,

पागल होगा कोई
भला मेरे जैसा,,
जो अपनी ही खुशियाँ दावं पर रखकर
तुम्हारे एहसास में बेचैनी ढूँढ रही है
कहते हैं कविताएँ
हमारी जिंदगी के अनुभव प्रकाशित करती हैं 
पर तुम तो… मेरी जीवन क विस्तार हो,,
जिसमें 'सही' 'गलत' का बोझ उठाए बिना
बेजान से इस जीवन में
तुम्हे इतना चाहना मेरे लिए मायने रखता है
बची जिंदगी से शिकायत नहीं अब मुझे,,,,!

 


Monday, 25 November 2013

न आओ मेरे पास

न आओ मेरे पास
दूर जाना मुश्किल होगा
मैं कड़ी हूँ स्थिर
रोके हुए खुद को वहीँ,,
जो आंखों में तुम्हारी पड़ने लगी हूँ ,,,,
कुछ कहना है 'शायद'
एक मुलाकात,,,
जो  आखिरी भी होगी,
ये भी जानती हूँ 

फिर भी न जाने क्यों
ख्यालों में तुम्हारे रहने लगी हूँ,,,,
जिसे कहती है दुनिया 'प्यार'
हाँ तुम्ही से करने लगी हूँ …