Thursday 25 April 2013

kyon hai insaaniyat sharmsaar !


क्या हो गया हमारी मानसिकता को? क्या हम इंसान ही हैं तो जानवर कैसे होते हैं?ये सवाल रोज मेरे मन को दहला रहे हैं -हर अख़बार हर न्यूज़ चैनल बलात्कार, दिनदहाड़े हत्याएँ, सड़क-हादसों की ख़बरों  से भरा रहता है और देखने -मदद करने वाला कोई नहीं होता।

सबसे पहले आती हूँ अलिगड, मध्य प्रदेश और दिल्ली में छोटी-छोटी ५-६ साल की बच्चियों क साथ हाल में हुए भयानक बलात्कार की घटनाओं पर । कोई कैसे इतना हैवान हो सकता है जिसे इतनी छोटी बच्चियों के साथ दर्दनाक एंड भयावह तरीके से दुष्कर्म और निर्ममता से हत्या करके क्या आनंद मिला ? खुशकिस्मती से दिल्ली की ५ साल की 'गुडिया' जिसके शरीर से पानी की बोतल aur मोमबत्ती ऑपरेशन से निकाली ली गयी, बच पाई, उसे गला काटकर, मरा जानकर ताला बंद कर छोड़ दिया था । सच १६ दिसम्बर की 'दामिनी' की याद ताजा हो आई ।

अब आती हूँ कुछ दिन पहले हुई मुंबई के व्यापारी की दिन दहाड़े गोली मार कर हत्या की वारदात पर। टी-वी में सी -सी -टीवी  फुटेज पर जब मैंने देखा कैसे लोग ये घटना होते हुए देख कर भी अनदेखा कर रहे थे, ठीक जैसे जयपुर में एक ट्रक, एक स्कूटर पर सवार परिवार को कुचल कर चला गया और कोई देख कर मदद करने वाला नहीं आया। उस बेचारे आदमी के सामने उसकी पत्नी  और ८ महीने की बच्ची ने तड़पते हुए दम तोड़ दिया और वह व उसका ५ साल का बीटा मदद के लिए भीख मांगते रहे किंतु किसी किसी bhi  गाडी वाले या राहगीर के सीने में दिल होता तो मदद के लिए आगे आता ना। कुछ देर बाद १-२ लोग देख सुन कर आए  तो पर कोई गाडी वाला उन्हें तभी अस्पताल ले जाता तो शायद उस औरत एंड बच्ची की जान बच भी सकती थी ।
ख़बरों सिलसिला यहाँ थमता नही, आए दिन एसी कई ख़बरें अखबारों और टीवी चैनलों में देखकर मेरे मन रो उठता है, कभी दर्दनाक घटनाएँ सामने आती हैं तो कितनी ही दबा दी जाती हैं । कभी विधालयों में छोटे बच्चों के साथ बलात्कार, child abuse,  तो कभी मार-पीट और  दुर्व्यवहार की घटनाएं ।   क्या हमें इंसान होने का हक़ है? क्या हमारे अन्दर इंसानियत बची है भी?

कभी कभी सोचती हूँ कि बड़े पड़े-लिखे लोग कहते हैं की कुछ असंतुलित-बीमार मानसिकता के लोग ऐसा जुर्म करते हैं तो हमे क्या हो गया है?हम अपने नन्हे बच्चों को क्या शिक्षा- कैसा व्यवहार  दे रहे हैं, उनके परीक्षा में कम नंबर आने पर,  परिवार की कलह-लड़ाई झगड़ों में हम उन्हें आखिर क्या सिखा रहे हैं?आपस में प्यार, सम्मान, संवेदना और दर्द भाईचारा तो कहीं खो चुका है, और है तो बस जलन, नफरत और दुसरे से आगे बदने की होड़। वक्त कहाँ है किसी के पास - न पुलिस, न प्रशासन, न सरकार, न आम आदमी और न ही बच्चों क लिए उनके माता-पिता के पास। जब भी कोई हादसा सामने आता है तो बड़ी हस्तियाँ, जनता  अपनी-अपनी राय और थू -थू करने टीवी चैनलों और सड़कों पर आ जाती हैं, वहीँ कुछ राजनितिक पार्टियाँ तथा मीडिया को भी अपनी-अपनी रोटियां sekne का फिर से मौका मिल जाता है।

और अंत में, न सिर्फ पुलिस, प्रशासन, सरकार , बल्कि हम सभी को अपनी मानसिकता बदलने की जरुरत है और अपने उप्पर वाले का डर  होना चाहिए फिर चाहे हम किसी भी dharm और प्रदेश के क्यों न हो ।कब तक हम दूसरों को दोष देकर अपनी जिम्मेवारियों से बचते रहेंगे, दूसरों के प्रति इमानदारी संवेदना अपनी आने वाली पीड़ी को हम तभी समझा पाएंगे जब hum स्वम insaniyat और मानवता का पालन करेंगे तथा अपने मन के अन्दर बेठे शेतान को मरकर इंसान को जिन्दा करेंगे। धन्यवाद् ।

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