Sunday 15 December 2013

"दामिनी" का एक साल का सफ़र

16 दिसंबर 2012 से आज 16 दिसंबर 2013 हो गया! क्या कुछ बदला इस एक साल में? कानून बनाने या अपनी जिम्मेदारी दूसरों पर लाद देने से क्या एक नारी को समाज में इज्जत से रहने का हक़ मिल जायेगा? कभी सोचती हूँ दामिनी/निर्भय नाम क्यों हमारे मस्तिष्क में याद है क्या इससे पहले या इसके बाद कभी इतनी निर्ममता नहीं हुई जो ये सोचने को मजबूर कर दे कि औरत  होना ही पाप है।. बदनामी के डर से कितने भयानक सच कभी सामने ही नहीं आ पाये होँगे।  कल शाम TV पर  दामिनी के माता-पिता को जब प्रत्यक्ष सामने देखा Newschannel पर Central park में देखा तो ख़ुशी से आँखे भर आयी । एक साल बाद ही सही  वो सामने बिना अपना चेहरा छुपाये आये क्योंकि वो शरसार नहीं हैं, ये बहुत बड़ी बात है ।

कितना अच्छा होता कि आज उन बचे 4 गुनहगारों को फांसी दे दी जाती काश ...। पर ये भारत देश है यहाँ नियम-कानून बनाये और तोड़े जाते हैं । नारी के हक़-Property, women reservation इत्यादि कि बाते होती हैं, पर इस पुरुष प्रधान समाज कि सोच कभी नहीं बदलती ।

जैसा आज हमारे देश में एक बच्ची, एक महिला, एक माता की जो हालत है तो सोचती हूँ कि  शायद अच्छा ही है मेरी बेटी नहीं है  । देखो न दोस्तों हमें अपनी छोटी बच्ची को स्कूल, टूशन या बाहर अकेले भेजने में कई बार सोचना पड़ता है, वैसे ही एक नारी का उसके पति के बिना कोई अस्तित्व नहीं रहने देते, यहाँ पुरुषों का नजरिया, जो हमेशा गलत ही रहा है ।उन पर फब्तियां कसना, अपना शिकार बनाना कितना आसान होता है ना।अगर महिलाये शारीरिक रूप से मजबूत हो भी जाएँगी तो क्या उनका शोषण, बलात्कार रुक जायेगा, क्या घरेलू-हिंसा रुक जायेगी, क्या छोटी बच्चियां बच पाएंगी? , नहीं,,,, क्यों हमारे माता-पिता,, हमारी परवरिश ने हमें सिखाया कि तुम एक लड़की हो, दब के रहो, फिर आजकल कि युवा नारी तो पड़ी-लिखी और आत्मनिर्भर है तो वो क्यों शिकार हो रही है उदाहरण तो बहुत हैं आसाराम बापू, नारायण साई, कांडा या फिर  तेजपाल, वजह चाहे कुछ भी रही हों ।

दोस्तों मेरी एक बार फिर अप सबसे Request है कि कृपया अपना नजरिया ladies (महिला) के लिए थोडा बदलें, उन्हें उनके काम,  खूबियों के लिए इज्जत देकर देखें, वही सम्मान आप भी अपनी पत्नी, बहन, माँ  और बेटी को मिलते देखेंगे । हमें अभी से अपने अपने बच्चों, खासकर लड़को को ये सिखाना होगा कि नारी को कमजोर और उपभोग की वस्तु न समझें तथा अपनी बच्चियों को आत्मनिर्भर होने के साथ -साथ उन्हें बहादुर और अपने हितों/अधिकारों के लिए भी जागरूक करना होगा, तभी एक दिन एक बच्ची, एक नारी और एक माँ खुली हवा में सांस ले सकेगी।धन्यवाद ।.. 
  

तुम तो समझदार ही थे
मैं ही नादानी कर बैठी,,
तुम्हारे जरा से अपनेपन को
क्यों प्यार समझ बैठी,,

आज सोचती हूँ
जब तुम परदे में हो
तो मैं क्यों बपर्दा रहूँ
हमेशा से दूर ही थे तुम
तो मैं क्यों पास रहूँ ,,,

परेशान थे न बहुत
शायद मेरी ख़ामोशी
अब तुम्हे राहत दे,,,.

Thursday 5 December 2013

agar...

पतझड़ का हो मौसम
बहार नहीं आती
दो पल के लिए भी,,,
अगर  आ जाए तो।

जहाँ रिश्तों में चाहत न हो
फूलों में खुश्बू न हो…
पैरों में बेड़ियां हो…
और कब से बंद पड़ी
खिड़कियों की चिटकनी को,,,
एक हवा का झोंका
अगर तोड़ जाए तो,,,

निगाह में उसकी कभी
मेरी चाहत नहीं शामिल
और ये भी अच्छा नहीं लगता उसे
अगर मैं अजनबी हो जाऊं तो… !

शिकायत नहीं अब मुझे,,,,

बोल देते हो न बाबू जब  प्यार से
और अपना बना लेते हो,,
दिल के खालीपन को…जैसे…

तुम्हारी मुस्कराहोटों  में
छुपी है मुझे चाहने कि खता
जो मेरी  आँखों से बयान होती हैं 

'प्यार' कितना प्यारा लगता है आज भी
और ख़ाक में मिलाने क लिए भी
ये शब्द ही काफी है,,,,

पागल होगा कोई
भला मेरे जैसा,,
जो अपनी ही खुशियाँ दावं पर रखकर
तुम्हारे एहसास में बेचैनी ढूँढ रही है
कहते हैं कविताएँ
हमारी जिंदगी के अनुभव प्रकाशित करती हैं 
पर तुम तो… मेरी जीवन क विस्तार हो,,
जिसमें 'सही' 'गलत' का बोझ उठाए बिना
बेजान से इस जीवन में
तुम्हे इतना चाहना मेरे लिए मायने रखता है
बची जिंदगी से शिकायत नहीं अब मुझे,,,,!

 


Monday 25 November 2013

न आओ मेरे पास

न आओ मेरे पास
दूर जाना मुश्किल होगा
मैं कड़ी हूँ स्थिर
रोके हुए खुद को वहीँ,,
जो आंखों में तुम्हारी पड़ने लगी हूँ ,,,,
कुछ कहना है 'शायद'
एक मुलाकात,,,
जो  आखिरी भी होगी,
ये भी जानती हूँ 

फिर भी न जाने क्यों
ख्यालों में तुम्हारे रहने लगी हूँ,,,,
जिसे कहती है दुनिया 'प्यार'
हाँ तुम्ही से करने लगी हूँ …




Monday 18 November 2013

बोलो कुछ तो,,
या अब नहीं बस,,
बहुत सवाल होते थे
तुम्हारे पास तो,,
जवाब अब हैं मेरे पास
मिलने आया करते थे तुम
जब जानती नहीं थी मैं
अब बिना जाने जा रहे हो…।

  
 जाती हुई धुप को,
 एक  चमकते हुए जुगनू  से प्यार हो गया
            सूरज की जलन से ज्यादा
           उसे जुगनू की ठंडक  भाने लगी,,
उसे मिले भी तो कैसे
दिन-रात के अंतर को
हटाये भी तो कैसे,,,
          पर बिन सूरज उसका,
        कोई अस्तित्व भी तो नहीं
       जैसे शादी के बाद स्त्री का !

जुगनू की चमक में खो तो  गयी है
कहाँ खबर है उसे,
समाज का दस्तूर निभाना है
सूरज की  आग में,
फिर खुद को जलाना है !!
  

Thursday 14 November 2013

अब नहीं दिखेगी 'वो'

आज तो सब आये हैं  मिलने उससे
जिन्हे 'वो' जानती नहीं 
और जिन्होंने कभी कोशिश नहीं की , वो भी! 
पर 'वो' नही है आज,,,
सुना है मर चुकी है,,
पर देखो 'वो' साँसे ले रही है 
खुली हवा में,,,
उन्ही अपनों में,,,
जिन्होंने सिर्फ आँसू ही दिए 
और वही लौटा रहे हैं आज भी!

थक चुकी थी 'वो'
झूठे और बेमानी रिश्ते निभाते 
अपनी ही जैल को रोज़ सजाते 
हार गयी थी 'वो'
दूरियों को घटाने की कोशिश में 
जीने  की वजह, किसी उम्मीद में 
खुश रहने का रास्ता  भी नहीं मिल रहा था 
इसलिए खुद ही सब के रास्ते से हट गयी,,,
जो रो देती थी छोटी-छोटी बातों पर
और खुश भी हो जाती थी खिल-खिल कर,,,, 

पति यह सोच के रो रहा है-
उसे फंसा के चली गयी ,,,,
सास-ससुर इसलिए-
कि फिर कैसे घर बसाना है,,,

चार दिन बाद सिर्फ 'भीगी याद' 
बन कर रह जायेगी  'वो'
जो आजतक तो थी 
पर किसी ने देखा ही नहीं,,,




  



Wednesday 6 November 2013

आदत है मुझे

अक्सर तुम्हारे रूठ जाने की
आदत है मुझे।

कभी कुछ शब्द अधूरे रह जाते हैं
कभी कोई बात
कभी रिश्ते पूरे नहीं हो पाते '
कभी जज्बात
जिंदगी के इस अनुभव की
आदत है मुझे।

मन का पंछी दिन-भर सोचे,,
जाने कैसी प्यास लगी है
कहता है दिल मर जाने को,,
कैसे कोई प्यास बुझी है?
खुश्बू देकर तुमको, खुद काँटो की
आदत है मुझे ,,,,,

Tuesday 29 October 2013

क्या कहोगे,,

शादी  के सालों  बाद भी,
अगर बिन बात के
आँखों में आंसूं भर आये,  तो क्या कहोगे,,

जहाँ न चाह हो, न एहसास हो,,
और न वफ़ा कि बातें
ख़ामोशी के दर्द की चादर ओढे सुबह,,
और सिसकियों में दबी हो रातें
     जब एक छत के नीचे रह्कर भी,
     कोई साथ को तड़पे,  तो क्या कहोगे…

कौन सही है, कौन गलत है'
फैसला नहीं हो पाया कभी …
परिवार बढ़ता रहा,,
दूरियों कि तरह,,,
यूँही उम्र गुजर जायेगी,,
तब समझ आयेगा,,
जिन रिश्तों और बातों के लिए लड़ते रहे,
उनमें अपना खुद का रिश्ता कहीं खो गया
      जब हमसफ़र से कोई उम्मीद न हो
     और दूसरा प्यार दिखाए, तो क्या कहोगे…।

मिनाक्षी। .
meenakshi2012@blogspot.in

Monday 2 September 2013

जिंदगी कुछ और होती,,

मेरे दर्द को.. . 
तेरे प्यार की तकदीर मिल जाती
तो जिंदगी कुछ और होती,,

 बिस्तर की सलवट सी हर ख्वाइश
धुल के और भी गहरी
मेरे जिस्म को.…
तेरे रूह की गर्मी मिल जाती
तो जिंदगी कुछ और होती,,,

हर दिन गुजरती उम्र को सोच कर
हर शाम  तनहाइयों में डूबना
मेरे हाथ को .…
तेरे साथ की लकीर मिल जाती
 तो जिंदगी कुछ और होती,,,

कुछ पाने  पर बहुत कुछ खोने का डर
बेदर्द जमाना और ये खुदगर्ज दिल 
मेरी हार को.…
तेरी जीत मिल जाती
तो जिंदगी कुछ और होती,,,

Friday 30 August 2013

कुछ अनकही


'वह' चुप था
बहुत आक्रोश में
जैसे कुछ छूट रहा हो
उसकी मर्ज़ी के बिना

बर्दाश नहीं कर पा रहा था
उसके दूर जाने तक का एहसास
सालों से, 'वो' मांगती रही
और 'वह ' कर भी न पाया
प्यार तक
पर अब शायद,,
देह से दिल तक
आने लगा था 'वह'

और 'वो' खामोश थी
शांत बिना प्यार के
जीना सीख लिया था जैसे उसने  `

'वह' तो एक मर्द था
सारी जिंदगी बंधन में नहीं बंधा 
आज 'वो' थोड़ी सी ढील ले
खिंचाव 'वह' क्यों महसूस कर रहा था

'वो' फिर कटघरे में थी
'वह' सवाल करता रहा
परिवार-समाज की दुहाई देता रहा
…फिर हार गयी 'वो'
क्योंकि 'वह' चाहता था …




Monday 12 August 2013

हाँ, मैं अब खुश हूँ

हाँ, मैं अब खुश हूँ ….
के प्यास नहीं, कोई अब बाकी।।

वक्त का पहिया ऐसा घूमा
जख्म सूख गए हैं अब सारे
हाँ, मैं खुश हूँ ….
के निशान नहीं पर
तड़प बची है, कुछ तो बाकी ।

प्यार में जिसके पागल थी में
उसको मेरी चाह नहीं थी
हाँ, मैं खुश हूँ ….
आज खड़ा है साथ मेरे वो
और मुझमे प्यार, नहीं है बाकी । 

 खुद को खुद से लड़ते देखा
खुद में खुद को मरते देखा
हाँ, मैं खुश हूँ ….
के पास मेरे सब कुछ है अब तो
पर कहीं कुछ जैसे छूट गया'
जिसकी फांस, कहीं है बाकी ,,, 

ITS NOT COMMON:


It may be common,people talk to me..but its not:that I listen to U...


It may be common,few love me..but its not:that I feel such for U...


It may be common,many remembers me..but its not:that so much I miss U..


Meenakshi..

Thursday 8 August 2013

देश की हालत

इस देश की है कुछ ऐसी हालत:

राष्ट्रपति अब कुछ सुन्ना नहीं चाहते
प्रधानमंत्री कुछ बोलना नहीं चाहते
रक्षा मंत्री कुछ देखना नहीं चाहते

सरकार  सो रही है
गरीब जनता रो रही है

सीबीआई बिक चुकी है
स्त्री की इज्ज़त घट चुकी है

बेवजह जवान शहीद हो रहे हैं
मीडिया वाले रोटियां सेंक रहे हैं

विपक्ष एक दुसरे को गालियाँ  दे रही हैं
किसी को किसी की परवाह नहीं है

कब तक यूँही घुटते रहेंगे
कब तक हाथ पर हाथ रखे रहेंगे।।।


pyar...


 प्यार छुपता नहीं छिपाने से
आ कर लें बैर  ज़माने से… 

राह मुश्किल है, पैर चलना साथी 
के, दर्द भरता नहीं दबाने से। 

Pyar chupta nhi chipane se..
aa kar len beir jamane se..

raah mushkil hai, per chalna saathi..
dard bharta nahi dabaane se..

Thursday 1 August 2013

'वो'

खिले हुए चेहरे पर
मुरझाई सी बिंदी-पाउडर
उसके,
दर्द की लकीरों को छिपाती होगी

होंठ तो उसके
आज भी  गुलाबी हैं
पर शायद मनचला
कोई देख न ले,
'वो' लिपस्टिक की परत लगाती होगी

बहुत खूबसूरत लगती है
जब साडी पहन के आती है,
उन्हें,
जो गिद्ध की तरह बैठे हैं
नौंच खाने को
मगर 'वो' गोरी कमर के पीछे
'अपने' ने दी हुई चोट
को सभी से छुपाकर  
खुद को बचाती भी होगी

रोज छोड़ कर चली आती है
अपने नन्हे बच्चों को,
जिन्होंने ये कहकर,
कल उसे छोड़ जाना है
'तुमने' हमें वख्त ही कहाँ दिया
'वो'जानती भी है
समाज के ठेकेदार
झूठ, फरेब, बदनामी
सब दे गए उसे
और अपने इतने मेहरबान
के,
दे डाले ढेरों ख़िताब
एक  अछी -  बहु, पत्नी, माँ
के  आगे शब्द ''ना '
और 'वो' इतनी गरीब
'प्यार'  के सिवा कुछ नहीं दे पाई होगी

कोई नहीं जनता
ये 'आधुनिक नारी'
एक पिंजरे से दुसरे ,
घर- बाहर कितनी ही
सिसकियाँ दबाती होगी ।

Monday 29 July 2013

घाव

मैंने सोचा भी कैसे,
घाव भर जायेंगे
मैं भूल जाऊंगी तुम्हे
और सावन लौट आएंगे।।

कोशिशें तो की बहुत
बारिशों में भीगने की,,
दर्द का दरिया
बना छाता तो कभी,,
अकेलापन मुझे सुखाये रहा
खुशिया खिसकती रहीं
रेत की तरह और ,,
भारी हुई जिंदगी मेरी।

यूँ तो हर रात,
आंख लग ही जाती हैं
निष्फल उमीदों की सेज पर
पहाड़ सा लगता हैं कभी
सिर्फ जिन्दा रहना,,
प्रतिदिन की दौड़-भाग
बड़ते-घटते दुःख
दम घोंटते रिश्ते
छोटे-बड़े सपने बुनके
उन्हें टूटते हुए
देख कर रोना
फिर उसी माया-जाल में
डूबना बार-बार
जिसे धिक्कारने को
मन करता है
की बहुत जी लिया,,
और चैन से सोने को
मन करता है

अब तो लगता है
खून के आखरी कतरे तक
नित नए जख्म
रिसते जाएँगे,,
 रिसते जाएँगे।




 



         


Friday 26 July 2013

कोई रिश्ता बनाना न तुम

एहसास को कोई रिश्ता
बनाना न तुम
यूँही मिलना और मुस्कुराना
गुजारिशें करना और
मुझे चाहना तुम

ख़ुशी का कम्पन सा जो
हो जाता हैं तुम्हे सोचकर
उसे मंद आँखों में ही सजाना तुम
एहसास को कोई रिश्ता
न बनाना तुम

भागती-मचलती
सांसों की हलचल
बहुत सुखद लगती है
जब नज़र से नज़र
मिलाये नही मिलती
एक उमंग सी
दिल को बेचेन किये रहती है
न थकती है न थकाती है
इसी मीठी उम्मीद की
बारिश में ही हरदम
मुझे भिगाना तुम
एहसास को कोई रिश्ता
न बनाना तुम

रिश्तों के भवंर में
कुछ कभी कहाँ बचा
समाज की बेड़ियों में
खुद को जकड़े  रखना तुम
एहसास को कोई रिश्ता
न बनाना तुम

Wednesday 17 July 2013

प्यार तो बस !

पल-पल बदलता है जो-------
न मरता है न कम होता है
जलता है या दफ़न होता है
जरूरतों में तोला जाता है
कभी रिश्तों में बाँधा जाता है
जज्बातों में महसूस---
तो कभी अनदेखा किया जाता है
कोई चेहरा दिल को छू लेता है
तो कभी दिल से चेहरा ही बदल जाता है

मन की ख़ूबसूरती कहाँ कोई देखता है
सच्चे दिल  दिल की कहाँ कोई सुनता है
तन्हाई की आगोश में
रुसवाई लिए दर्द में
कहीं जरा सी धुप दिखे
शायद वही तो है 'प्यार'----

----------------मिनाक्षी 

Tuesday 16 July 2013

तुम नाराज हो !

सालों बीते एक अजनबी के साथ
जैसे एक उम्र बीत गयी
अपनेपन का एहसास तक नहीं,,
'प्यार' शब्द का लेना तो होगा गुनाह
रुसवाई के दर्द में
भीगी पलकों की बारिश में
एक ओस की बूँद की तरह
तुम नाराज हो…

न मेरे आंसू , ना तुम्हारी नफरत
थम रही है तो बस मेरी साँसे
जिंदगी मजाक बन गयी
और कितना  गिराऊं खुद को
की तुम नाराज हो,,,

इंतज़ार रहता है बस सबके सोने का
तन्हाई की ख़ामोशी में एक कोने का
लिपट के तकिये से कई बार रोती हूँ
सब कुछ तो है मेरे पास, सोचती हूँ
फिर क्यों रहे मेरे हाथ कुछ खाली से,,,
के कभी तो तुम जागो गहरी नींद से,,
मगर खर्राटों में तुम्हारी,
सिसकियाँ मेरी कहीं दब जाती हैं
एसे ही हर रात कट जाती है
फिर भी तुम नाराज हो,,,

सुना था :कोशिश करने वाले की हार नहीं होती
मगर उस जीत में क्या जीवन बचा
जहाँ उम्र बीत चुकी और जज्बात भी
हाँ हार चुकी इस जीवन से
तभी तो छल -छला जाती हैं ये आंखे
पीड़ा किसी की देखकर
जैसे दागा हो किसी ने अपने ही दर्द पर
पल पल खुद को बदला मगर काश,,
जो शामिल होती मेरी चाहत में तुम्हारी भी
पल पल जहर घुल रहा है
यूँही जिन्दा मार रहे हो
फिर भी तुम नाराज हो,,,

...मिनाक्षी




Tuesday 9 July 2013

FOR LIFE !

Few days back..i saw one advertisement of "Quit Smoking camp" in newspaper and tried to show to my husband to join, my small kid curiously asked me what's it was. My husband angrily said,y to tell this loudly... i thought if there is something which u have to hide to do, even to talk about that in the presence of ur kids.. then is it so necessary for u.. to continue..??
Cant we quit or minimize such things at the cost of our family?
Why Smoking/alcohol have become fashion trend for enjoying life..??Is happy life not possible without such addiction???
LIFE IS SHORT! MAKE EVERY MOMENT HAPPY N LIVING, NOT BY REDUCING DAYS BY SMOKING/ALCOHOL/DRUG ADDICTION FOR THE SAKE OF ENJOY....PLS THINK OVER IT..

Friday 5 July 2013

jindagi ka dard

कहते हैं सिर्फ जीना,, तो जिंदगी नहीं
तो फिर कैसे जियें हम ..
उन रिश्तों के सहारे जिन्हें कभी समझ ही नहीं पाए
या उस प्यार की ख्वाइश में जिसे उम्र भर सिर्फ तलाशते रहे
और उस तलाश में न जाने कितनी बार प्यार कर बैठे
हर बार, सोच, तो कभी खुद को बदलते रहे,
किन्तु जरुरत बस वही रही
और मुसाफिर बदलते रहे,,

थोड़ी सी ख़ुशी मिले तो कितने खुश हो जाते
और जिंदगी हसीं लगने लगती
पर जरा से ग़म में आंसुओं में भरकर
जिंदगी नहीं लगती सुहानी
पर क्या चेहरे की मुस्कराहटों में कभी
छुपा है खुशहाल जिंदगी का सच भला?
तो फिर क्यों हो जाते हैं तलाक?
और क्यों कर लेता है कोई खुदकुशी?
इतना दुखी और मजबूर होकर
के कर लेते हैं क़त्ल तक,,,
जो प्यार-हमसफ़र हुआ करते थे कभी ,,

कहने को तो रिश्ते कई हैं पर ..
न भीड़ में, न परिवार में
वो सुकून वो प्यार जो नहीं मिला कभी भी कहीं
बस खुद को दूसरों की जरूरतों में ढालते रहे…
और इसी को जिंदगी समझ बैठे
रोते रहे हँसते रहे जब तक सांस है जीते रहे

जिनके साथ रहते हैं उनसे लगाव, झगडा सब हो गया
बस नहीं हो पाया वो ..
एक प्यार ही है जिसे सपनो में बचपन से संजोते रहे ,,
वो स्पर्श जो मन को सुकून दे,,
और जिंदगी का एक  एहसास दे।।।


Thursday 25 April 2013

what happen to us?

What's wrong with our mindset? How are the animals we are human? These questions are terrify my mind every day - every newspaper and every news channel, rape, murder in broad daylight, outdoors - is filled with news of accidents and behold - there is no one comes to help.

Aligad first come, Madhya Pradesh and Delhi little - little girls 5-6 years with the recent terrible events of rape. Luckily 5 years of Delhi 'doll' water bottle and candles from which the body was taken out of operation, managed to survive, her throat cut, was left dead lock knowing. The truth of December 16 'Damini's memories again raised in my mind.

Now come a few days before the Mumbai businessman shot dead in broad daylight on the incident. I saw in TV -cctv, no one helped but ignored that man in a same way a road accident  in Jaipur held,few days back, when one truck driver hit the family on a scooter, and vanished. the injured person was begging for help with his 5 year son, his wife and 8 months daughter died in pain but no passersby or vehicle passengers  helped them.  If anyone helped them and took them to hospital, they could be survived.

Seeing my mind arises when, if ever revealed how traumatic events are stifled. Raping young children in schools, child abuse, sometimes incidents of abuse. Do we have the right to be human? What humanity left in us too?

Highly educated people says, these persons are mentally sick, which commit such extreme crimes.  Come on, what we are teaching to our young generation: family discord - Battle, how we behave with our children on their less marks in exams.  Love, respect, compassion and brotherhood pain has almost lost , and just jealousy, hatred and move on to another race taken places. Where is the time for someone - not the police, not the administration, nor the government, nor the common man nor the parents for children. Whenever such incidents, comes in light all, high personalities, public starts criticizing and blaming on another on TV, media and roads, in the same way, political parties and media channels got opportunity to make profits 

AT last, not only Police, Government, but we all have to change our mindset and faith in our God, even if we are from any religion or state. Till how, we will evade our responsibilities? We can only teach sincere compassion towards others to our young generation only if we ourselves  follow the humanity and dump the devil seated in our mind and alive human being.Thank you.

kyon hai insaaniyat sharmsaar !


क्या हो गया हमारी मानसिकता को? क्या हम इंसान ही हैं तो जानवर कैसे होते हैं?ये सवाल रोज मेरे मन को दहला रहे हैं -हर अख़बार हर न्यूज़ चैनल बलात्कार, दिनदहाड़े हत्याएँ, सड़क-हादसों की ख़बरों  से भरा रहता है और देखने -मदद करने वाला कोई नहीं होता।

सबसे पहले आती हूँ अलिगड, मध्य प्रदेश और दिल्ली में छोटी-छोटी ५-६ साल की बच्चियों क साथ हाल में हुए भयानक बलात्कार की घटनाओं पर । कोई कैसे इतना हैवान हो सकता है जिसे इतनी छोटी बच्चियों के साथ दर्दनाक एंड भयावह तरीके से दुष्कर्म और निर्ममता से हत्या करके क्या आनंद मिला ? खुशकिस्मती से दिल्ली की ५ साल की 'गुडिया' जिसके शरीर से पानी की बोतल aur मोमबत्ती ऑपरेशन से निकाली ली गयी, बच पाई, उसे गला काटकर, मरा जानकर ताला बंद कर छोड़ दिया था । सच १६ दिसम्बर की 'दामिनी' की याद ताजा हो आई ।

अब आती हूँ कुछ दिन पहले हुई मुंबई के व्यापारी की दिन दहाड़े गोली मार कर हत्या की वारदात पर। टी-वी में सी -सी -टीवी  फुटेज पर जब मैंने देखा कैसे लोग ये घटना होते हुए देख कर भी अनदेखा कर रहे थे, ठीक जैसे जयपुर में एक ट्रक, एक स्कूटर पर सवार परिवार को कुचल कर चला गया और कोई देख कर मदद करने वाला नहीं आया। उस बेचारे आदमी के सामने उसकी पत्नी  और ८ महीने की बच्ची ने तड़पते हुए दम तोड़ दिया और वह व उसका ५ साल का बीटा मदद के लिए भीख मांगते रहे किंतु किसी किसी bhi  गाडी वाले या राहगीर के सीने में दिल होता तो मदद के लिए आगे आता ना। कुछ देर बाद १-२ लोग देख सुन कर आए  तो पर कोई गाडी वाला उन्हें तभी अस्पताल ले जाता तो शायद उस औरत एंड बच्ची की जान बच भी सकती थी ।
ख़बरों सिलसिला यहाँ थमता नही, आए दिन एसी कई ख़बरें अखबारों और टीवी चैनलों में देखकर मेरे मन रो उठता है, कभी दर्दनाक घटनाएँ सामने आती हैं तो कितनी ही दबा दी जाती हैं । कभी विधालयों में छोटे बच्चों के साथ बलात्कार, child abuse,  तो कभी मार-पीट और  दुर्व्यवहार की घटनाएं ।   क्या हमें इंसान होने का हक़ है? क्या हमारे अन्दर इंसानियत बची है भी?

कभी कभी सोचती हूँ कि बड़े पड़े-लिखे लोग कहते हैं की कुछ असंतुलित-बीमार मानसिकता के लोग ऐसा जुर्म करते हैं तो हमे क्या हो गया है?हम अपने नन्हे बच्चों को क्या शिक्षा- कैसा व्यवहार  दे रहे हैं, उनके परीक्षा में कम नंबर आने पर,  परिवार की कलह-लड़ाई झगड़ों में हम उन्हें आखिर क्या सिखा रहे हैं?आपस में प्यार, सम्मान, संवेदना और दर्द भाईचारा तो कहीं खो चुका है, और है तो बस जलन, नफरत और दुसरे से आगे बदने की होड़। वक्त कहाँ है किसी के पास - न पुलिस, न प्रशासन, न सरकार, न आम आदमी और न ही बच्चों क लिए उनके माता-पिता के पास। जब भी कोई हादसा सामने आता है तो बड़ी हस्तियाँ, जनता  अपनी-अपनी राय और थू -थू करने टीवी चैनलों और सड़कों पर आ जाती हैं, वहीँ कुछ राजनितिक पार्टियाँ तथा मीडिया को भी अपनी-अपनी रोटियां sekne का फिर से मौका मिल जाता है।

और अंत में, न सिर्फ पुलिस, प्रशासन, सरकार , बल्कि हम सभी को अपनी मानसिकता बदलने की जरुरत है और अपने उप्पर वाले का डर  होना चाहिए फिर चाहे हम किसी भी dharm और प्रदेश के क्यों न हो ।कब तक हम दूसरों को दोष देकर अपनी जिम्मेवारियों से बचते रहेंगे, दूसरों के प्रति इमानदारी संवेदना अपनी आने वाली पीड़ी को हम तभी समझा पाएंगे जब hum स्वम insaniyat और मानवता का पालन करेंगे तथा अपने मन के अन्दर बेठे शेतान को मरकर इंसान को जिन्दा करेंगे। धन्यवाद् ।