Friday 30 August 2013

कुछ अनकही


'वह' चुप था
बहुत आक्रोश में
जैसे कुछ छूट रहा हो
उसकी मर्ज़ी के बिना

बर्दाश नहीं कर पा रहा था
उसके दूर जाने तक का एहसास
सालों से, 'वो' मांगती रही
और 'वह ' कर भी न पाया
प्यार तक
पर अब शायद,,
देह से दिल तक
आने लगा था 'वह'

और 'वो' खामोश थी
शांत बिना प्यार के
जीना सीख लिया था जैसे उसने  `

'वह' तो एक मर्द था
सारी जिंदगी बंधन में नहीं बंधा 
आज 'वो' थोड़ी सी ढील ले
खिंचाव 'वह' क्यों महसूस कर रहा था

'वो' फिर कटघरे में थी
'वह' सवाल करता रहा
परिवार-समाज की दुहाई देता रहा
…फिर हार गयी 'वो'
क्योंकि 'वह' चाहता था …




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