Tuesday 16 July 2013

तुम नाराज हो !

सालों बीते एक अजनबी के साथ
जैसे एक उम्र बीत गयी
अपनेपन का एहसास तक नहीं,,
'प्यार' शब्द का लेना तो होगा गुनाह
रुसवाई के दर्द में
भीगी पलकों की बारिश में
एक ओस की बूँद की तरह
तुम नाराज हो…

न मेरे आंसू , ना तुम्हारी नफरत
थम रही है तो बस मेरी साँसे
जिंदगी मजाक बन गयी
और कितना  गिराऊं खुद को
की तुम नाराज हो,,,

इंतज़ार रहता है बस सबके सोने का
तन्हाई की ख़ामोशी में एक कोने का
लिपट के तकिये से कई बार रोती हूँ
सब कुछ तो है मेरे पास, सोचती हूँ
फिर क्यों रहे मेरे हाथ कुछ खाली से,,,
के कभी तो तुम जागो गहरी नींद से,,
मगर खर्राटों में तुम्हारी,
सिसकियाँ मेरी कहीं दब जाती हैं
एसे ही हर रात कट जाती है
फिर भी तुम नाराज हो,,,

सुना था :कोशिश करने वाले की हार नहीं होती
मगर उस जीत में क्या जीवन बचा
जहाँ उम्र बीत चुकी और जज्बात भी
हाँ हार चुकी इस जीवन से
तभी तो छल -छला जाती हैं ये आंखे
पीड़ा किसी की देखकर
जैसे दागा हो किसी ने अपने ही दर्द पर
पल पल खुद को बदला मगर काश,,
जो शामिल होती मेरी चाहत में तुम्हारी भी
पल पल जहर घुल रहा है
यूँही जिन्दा मार रहे हो
फिर भी तुम नाराज हो,,,

...मिनाक्षी




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