Friday 5 July 2013

jindagi ka dard

कहते हैं सिर्फ जीना,, तो जिंदगी नहीं
तो फिर कैसे जियें हम ..
उन रिश्तों के सहारे जिन्हें कभी समझ ही नहीं पाए
या उस प्यार की ख्वाइश में जिसे उम्र भर सिर्फ तलाशते रहे
और उस तलाश में न जाने कितनी बार प्यार कर बैठे
हर बार, सोच, तो कभी खुद को बदलते रहे,
किन्तु जरुरत बस वही रही
और मुसाफिर बदलते रहे,,

थोड़ी सी ख़ुशी मिले तो कितने खुश हो जाते
और जिंदगी हसीं लगने लगती
पर जरा से ग़म में आंसुओं में भरकर
जिंदगी नहीं लगती सुहानी
पर क्या चेहरे की मुस्कराहटों में कभी
छुपा है खुशहाल जिंदगी का सच भला?
तो फिर क्यों हो जाते हैं तलाक?
और क्यों कर लेता है कोई खुदकुशी?
इतना दुखी और मजबूर होकर
के कर लेते हैं क़त्ल तक,,,
जो प्यार-हमसफ़र हुआ करते थे कभी ,,

कहने को तो रिश्ते कई हैं पर ..
न भीड़ में, न परिवार में
वो सुकून वो प्यार जो नहीं मिला कभी भी कहीं
बस खुद को दूसरों की जरूरतों में ढालते रहे…
और इसी को जिंदगी समझ बैठे
रोते रहे हँसते रहे जब तक सांस है जीते रहे

जिनके साथ रहते हैं उनसे लगाव, झगडा सब हो गया
बस नहीं हो पाया वो ..
एक प्यार ही है जिसे सपनो में बचपन से संजोते रहे ,,
वो स्पर्श जो मन को सुकून दे,,
और जिंदगी का एक  एहसास दे।।।


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